आओ गँवार-गँवार खेलें
आओ धंधा-बाज़ार खेलें
भेझे से पैदल को पकड़ा
एक फट्टी-पुरानी-सी किताब
दिखाना, जैसे फाड़ दिए हों
ज़िंदगी के ही हिसाब-किताब!
चाहे सामने वाला कीचड़यपा के
लीचड़यपा से महाकीचड़ में
लगा चूका हो भयंकर आग
और मची हो खलबली ईधर-उधर
कीचड़ छिपाओ, लीचड़ छिपाओ!
अपने बच्चों की कितनी जिंदगी
खर्च करदी इन सांगियों के -
बेहूदगी से भरे इस गंदे धंधे में?
क्या सारी की सारी लगाओगे दाँव पे?
अक़ल से पैदल भेझे वालो
कब निकलोगे बाहर इस सबसे?
इन जुआरीयों-शिकारीयों के धंधे से?
खा गए ये घर तुम्हारे
खा गए ये बच्चे तुम्हारे
कोख में ही, दुनिया में आने से पहले
खा गए ये, ज़िंदा बच्चों की ज़िंदगियाँ
यहाँ-वहाँ, कैसे-कैसे उलझाके के!
खा गए ये सुहाग तुम्हारे
खा गए ये बुजुर्ग तुम्हारे, वक़्त से पहले
खा गए कितने ही रिश्ते-नाते तुम्हारे
किसलिए?
इसलिए, की भेझे से पैदल, गँवार हो?
और वही रहना चाहते हो!?