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राजनीती के सर्कष में मैडिकल-इमरजेंसी!

राजनीती के सर्कष में मैडिकल-इमरजेंसी!

Friday, July 23, 2021

आओ गँवार-गँवार खेलें!

 आओ गँवार-गँवार खेलें 

आओ धंधा-बाज़ार खेलें 

भेझे से पैदल को पकड़ा 

एक फट्टी-पुरानी-सी किताब 

दिखाना, जैसे फाड़ दिए हों 

ज़िंदगी के ही हिसाब-किताब! 


चाहे सामने वाला कीचड़यपा के 

लीचड़यपा से महाकीचड़ में 

लगा चूका हो भयंकर आग 

और मची हो खलबली ईधर-उधर   

कीचड़ छिपाओ, लीचड़ छिपाओ!


अपने बच्चों की कितनी जिंदगी 

खर्च करदी इन सांगियों के -

बेहूदगी से भरे इस गंदे धंधे में?

क्या सारी की सारी लगाओगे दाँव पे? 

अक़ल से पैदल भेझे वालो 

कब निकलोगे बाहर इस सबसे?

इन जुआरीयों-शिकारीयों के धंधे से?


खा गए ये घर तुम्हारे 

खा गए ये बच्चे तुम्हारे 

कोख में ही, दुनिया में आने से पहले 

खा गए ये, ज़िंदा बच्चों की ज़िंदगियाँ 

यहाँ-वहाँ, कैसे-कैसे उलझाके के!


खा गए ये सुहाग तुम्हारे 

खा गए ये बुजुर्ग तुम्हारे, वक़्त से पहले 

खा गए कितने ही रिश्ते-नाते तुम्हारे 

किसलिए?

इसलिए, की भेझे से पैदल, गँवार  हो? 

और वही रहना चाहते हो!? 

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