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राजनीती के सर्कष में मैडिकल-इमरजेंसी!

राजनीती के सर्कष में मैडिकल-इमरजेंसी!

Sunday, November 14, 2021

राजनीती के सर्कष में मैडिकल-इमरजेंसी!

किसी को  जेल से बाहर जाना हो 

किसी को जेल में भिझवाना हो 

किसी से हो खुंदक बड़ी 

कैसे भी काबू में ना आता/ती  हो 

विपदा आन पड़ी हो भारी 

उसी को "मैडिकल-इमरजेंसी" लगा दो  


आज की राजनीती के सर्क में 

भाड़े के टटूओं की भी जरुरत कहाँ? 

अनपढ़, गँवार, लाचार, बेरोजगार  

जंग लगाए दिमाग लिए घुमते   

आदमी के खोल में --

भेजे से पैदल, चलती-फिरती मशीन जैसे 

नादान, नासमझ लोग कहाँ काम आएंगे


हर एक दौर की, हर एक जगह की 

अपनी बीमारी हैं, अपने झमेलें हैं 

अपना रहन-सहन, अपना खान-पान है 

और अपनी ही तरह की हैं परेशानियाँ 

कुछ प्राकृतिक हैं, मगर 

बहुत कुछ के पीछे उस दौर की राजनीती है


जितना ज्यादा मशीनी दौर बढ़ा है 

जितनी ज्यादा तकनीक बढ़ी है 

उतने ही ज्यादा उसके खतरे बढ़े हैं 

जितनी ज्यादा परख बिमारियों की बढ़ी है 

उतने ही ज्यादा उन्हें पनपाने के खतरे बढ़े हैं 

उससे भी ज्यादा खतरनाक 

हर एक दौर की अपनी राजनितिक बीमारियां हैं 

जिनके कीटाणु, कीड़े नकली, कोड मात्र हैं 

और खतरे? असली हैं! हालांकि हैं वो भी कोड ही!

और इलाज के तरीके, दवाईयाँ? वो भी कोड, सर्कष के!


दौर कल भी वो थे 

"जो दिखता है, वो होता नहीं 

और जो होता है, वो दिखता नहीं "

जब आम जनता को वो दिखने लग जाए 

तो समझो, ये सब पुराना हो चुका है 

जो अब चल रहा है 

इस दौर की खबर भी आगे आते-आते आएगी 


जो शायद खोल पायेगी जालों-जंजालों को 

आज के वक़्त के कैसे-कैसे घोटालों को 

कौन-सी इमरजेंसी कब कहाँ और 

कैसे-कैसे लगी 

और उन्हें लगाने के लिए क्या-क्या प्रयोग हुआ! 


कहाँ बुजुर्ग, कैसे-कैसे निपटा दिए गए 

कहाँ धरे गए, जवान कैसे-कैसे

किस दौर की, किस-किस बीमारी के नाम पे? 

कहाँ बच्चे पैदा हुए और कहाँ नहीं होंगे 

होंगे तो कितने होंगे? किस दिन, महीने होंगे?

कैसे होंगे और कब तक निगरानी में होंगे 

कब अपने घर जा पाएंगे या नहीं जाएंगे

कब तक रहेंगे शीशों की आन-बान में वो 

फिर पीलिया कब होगा और 

कब तक लाइट की निगरानी में होंगे! 


हाँ! खासमखास के ही नहीं 

आम आदमी की जिंदगी के उतार-चढ़ाव 

पैदाईस, जीवन-मरण, बीमारी, एक्सीडेंट 

अपने-अपने दौर के कारनामे दिखाते हैं  

राजनीती के रंगो की, ढंगो की गाथा गाते हैं  

राजनीति के सर्कष की उठापटक के 

खेल बताते हैं 

मशीनी युग के, मशीनी गुर बताते हैं

बस ज़रा-सा, आँखों-कानो के साथ-साथ 

जो भेझा भी खोल लें हम!


Without using your mind you are nothing more than a machine or puppet which can be remote controlled in so-many forms. Hardly matter then you are literate or illeterate.  

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