रस-मी-ना और पाश-मी-ना
ये या-रियाँ और ये दो-स्तियाँ
धंधे के हैं खेल सब ये?
रेलम-रेल और पेलम-पेल!
तुम फ्रेम करो हमें
और हम फ्रेम करें तुम्हे
सालों दर साल चले
कैसे-कैसे काले खेल ये!
ये लंका राव-नी
और राष्ट्र-ध्रुत कौरवां-दी
ये द्रोह और ये विद्रोह
ख़िलाफ़त राज की या राष्ट्र की?
हैरान हूँ मैं जान-जान के
बारिकियाँ इस जुए के
जुआरियों के शिकारों की
और शिकारों पे अत्याचारों की!
हैरानी पे बड़ी हैरानी ये
की अभी जाना ही क्या है
इस धंधे में और क्या-क्या है
ओह! और जानना भी बचा है!
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