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राजनीती के सर्कष में मैडिकल-इमरजेंसी!

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Saturday, July 17, 2021

जुआरी और शिकारी!

जुआरी और शिकारी! 

इनके पंजो से बाहर निकलना क्यों है जरुरी?

क्यूंकि ये आपको उस जाल में बांधे रखेंगे 

जिसकी न आपको खबर है 

और न ही उसके परिणामों का अंदाजा!


तुम सारी ज़िंदगी उनकी कैद में रहोगे 

उनके लिए काम करोगे 

उनके इशारों पे आपकी ज़िंदगी चलेगी 

चलेगी नहीं रेंगेगी, नाली के कीड़ों की तरह 

और आपको खबर भी नहीं लगेगी! 


तुम वो गधे बने रहोगे 

जो ढेंचू-ढेंचू भी करोगे, तो उनके इशारों पे 

काम भी करोगे, तो उनके इशारों पे 

ये तक भूलकर, की तुम्हारी अपनी भी ज़िंदगी है 

तुम्हारे अपनों की भी ज़िंदगी है और वो जरुरी है 


उनके गोबर-गणेश का हिस्सा बनने की बजाये 

उनके इशारों पे गायें-भैंस करने की बजाये 

उनके सांप-सीढ़ी, लूडो-चेस के मोहरे बनने की बजाये 

उनके इस कीचड में धँसने की बजाये, इससे बाहर निकलो 

जुआरियों और शिकारियों से बाहर भी एक दुनिया है 


इंसानो को नम्बरों  की तरह उछालने वाले इस धंधे में 

ज़िंदा या मुर्दा इंसान सिर्फ़ एक नंबर है 

एक मोहरा मात्र है, इनके खेल की चालों का 

आम नागरिक इनकी सेनाओं के आम सिपाही भर है 

जो सबसे पहले मरते हैं, इधर भी और उधर भी! 


प्रजातंत्र या गणतंत्र जैसा यहाँ कुछ भी नहीं है 

इलेक्शंस, वोट्स दिखावा मात्र है 

शतरंज की बाजियॉँ कहीं और ही चली जाती हैं  

कौन जीतेगा, कौन हारेगा, ये भी आम नागरिक की 

सोच और समझ की दुनियाँ से बहुत परे का राज़ है 


यहाँ जो होता है, वो दीखता नहीं है 

और जो दीखता है, वो होता नहीं है 

इंसान जो देखता और सुनता है, उसे ही सच मान लेता है 

ये जाने बैगर की दिखाने और सुनाने वाले कौन हैं?

इसे जाने बैगर, सब किसी महामारी-सा सच है!


"जैसे कोविद-कोरोना-पंडामिक!"  

जैसे राम-नाथ-कोविंद!

ये बिमारी है? महामारी है? इंसान है? या हैं? 

या सीधे-उलटे, उलटे-सीधे, गुथे हुए जैसे -

 कोड्स (codes)! 

आम आदमी के लिए हों जैसे कोई कोढ़!  

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