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राजनीती के सर्कष में मैडिकल-इमरजेंसी!

राजनीती के सर्कष में मैडिकल-इमरजेंसी!

Saturday, December 3, 2022

एक ड्राइव पे चलें क्या?

एक ड्राइव पे चलें क्या?

तिलक मार्ग, मंडी हाउस, दिल्ली?  

या शायद 

बहादुर शाह जफ़र मार्ग या नेल्सन मंडेला मार्ग? 

सुना है, एक मार्ग पे सुप्रीम कोर्ट है  

और एक मार्ग पे है, उच्तर शिक्षा का रखवाला? 

सुना है? 


इतने बड़े-बड़े नाम है 

तो काम भी बड़े ही होते होंगे?

हड्डी-पसली तो नहीं टुटती होंगी ना वहाँ?

खून-ख़राबा भी नहीं होता होगा? 

एक अदना से इंसान को -

झुंड द्वारा, साजिशों से घेर कर  

उसका खास-म-खास ईलाज भी नहीं होता होगा?


हाँ, शायद ऐसे ईलाज करने वालों का 

जरूर कोई ईलाज होगा, इतने बड़े लोगों के पास?

राजनितिक गलियारों के संगीन-सियांरों से 

कम ही बनती होगी, ऐसे-ऐसे बड़े लोगों की?

वो खुनी-सत्ताओं के रण में 

आम आदमी की चिताओं को आग लगते देख 

इतना तो जरूर सोचते होंगे 

कम से कम, मेरा तन मन, किसी भी तरह 

इन हत्याओं का हिस्सेदार ना हो?

क्यूँकि उससे आगे कुछ कर पाना  

शायद ?

उनके काम काज़ या मस्तिक के दायरे में

ना आता हो?  


सच में ये रिश्तों का रण है क्या?

Click on राजनीती में युद्ध है, युद्ध में राजनीती है!

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Sunday, October 30, 2022

दिशा और दशा?

एक ज़माना था जब  

इलेक्शंस मारपिट , गुंडागर्दी का खेल होता था 

पैसा-दारु जमकर चलता था

कोई हिसाब-किताब ही नहीं होता था 

की ये गवाँरपठ्ठे बनने के बाद करेंगे क्या?

बदला है क्या कुछ? 

कैसे उठते हैं उम्मीदवार?

 कैसे काम करती हैं ये इलेक्ट्रॉनिक मशीन्स (EVM?)?

कौन और कैसे जीतता है?

दे दारु, दे पैसा, मारपीट, लूटमार?

साम, दाम, दंड, भेद 

मुद्दा कोई कहाँ है?

वो जहाँ कहाँ है?

अब ये जो देश है तेरा, कुछ यूँ समझ आता है 

"कौन-सा देश बावले, कौन-सी सीमायें?

ये झन्डुओं जैसी बातें तुम कहाँ से लाये?" 

जितने ज्यादा गवाँरपठ्ठे होंगे

उतने ज्यादा राजे-महाराजे और गुन्डे राज करेंगे 

बस यही दशा और दिशा है भारत जैसे देशों की?

या गुंजाइश है अभी भी कुछ बदलाव की?

Saturday, August 13, 2022

कौन सा देश बावले?

 कौन सा देश बावले? 

कौन सी सीमायें?

ये झण्डूओं जैसी बातें    

तुम कहाँ से हो लाये?


ओ बावलीबूच ऐसे मत बोल! 

अंदर हो जाओगे 

ऐसे-ऐसे, कैसे-कैसे विवाद 

क्यों खामखाँ में लेते हो? 


तुम्हें किसीने बताया नहीं क्या?

ये झंडे के पीछे का बवाल क्या है?

इस बार 15 अगस्त को ऐसा ख़ास क्या है?

झंडू और झंडे का ये विवाद क्या है?


अरे 15 नहीं "तेरा से पंद्रह" 

हर घर तिरंगा

हर गली तिरंगा 

हर चौराहा और ऑफिस तिरंगा 


अरे छोड़ तू बिल्ला, छोड़ तू रंगा

हर काण्ड पे है ये झंडू गंगा 

इस काण्ड पे झंडू है एक ढक्कण  

उस काण्ड पे खाट खड़ी है 

और मातम पे फिरसे ढका है --

अब तू ही बोल "झंडू ढका है या है झंडा"?


ये देश, ये जहाँ, ये समाज़ वो कहाँ?

जो पढ़ा था, सुना था, देखा था 

रग-रग में लहू-सा, 

देश का जो जज़्बा दौड़ता था 

इन सीमाओं की हक़ीक़त

इन वर्दियों के जलवे 

 इन कुर्शियों की रस्साकस्सी 

"इवेंट्स एंड मैनेजमेंट ऑफ़ मास्सेस" 

के सिवाय कुछ भी तो नहीं 


बस इतना-सा जानने के बाद 

तुम चाहे, ए मेरे वतन के लोगो सुनना 

या सुनना वन्दे मातरम 

न वो खून दौड़ेगा देशभक्ति का 

न किसी देश का हिस्सा पाओगे खुद को 

बस खुद को ठगा-सा महसूस करोगे 

एक upper-strata के जालों-निवालों में 


कौन UNO है, कौन है WHO? 

कौन हैं ये देश?

क्या और कैसी हैं सीमायें इनकी?

और कौन हैं  रखवाले इनके?

किसके लिए मरते, कटते ?

ये गुप्तचर विभाग?

क्या कुछ हैं ये करते?

कैसे हैं युद्ध ये,  कैसे संधि विच्छेद? 


झंडू और झंडे का विवाद 

बस इन्हीं जालों और जंजालों का 

छोटा-सा हिस्सा भर है 

यही वो हिस्सा है 

जो हमसे आगे पीढ़ियों को पढ़ना है 

officially या unofficially 

Saturday, May 21, 2022

ज़मीन कैसी-कैसी?

 ज़मीन थोड़ी-सी 

थमी थोड़ी-सी 

अटकी थोड़ी-सी 

खटकी थोड़ी-सी 

उड़ती थोड़ी-सी 

रुकी-रुकी-सी 

चली ये कहाँ?


रोके से रुकी ना  

रोंदे से झुकी ना 

भगाये से हिली ना 

अंधड़ बन चली जब 

इंसान की अकड़ के भर्म पे 

लगी पानी में आग जैसे     

दिखाए ये भी जाने रंग कैसे-कैसे?

Friday, February 11, 2022

छोटी सोच और तुच्छ लोग!

छोटी सोच और तुच्छ लोग 

खा जाते हैं 

आसपास की हर अच्छाई को 

जैसे दीमक खा जाते हैं 

मज़बूत से भी मज़बूत लकड़ी को 

लकड़ी निर्जीव है, नहीं मालूम ईलाज उसे 

न ही वो हिलडूल सकती इधर या उधर 

मगर इंसान न ही निर्जीव है और न ही जड़! 

 

Sunday, January 30, 2022

कोठे वाले मालिकों का धन्धा!

 जो पढ़ेगा-लिखेगा वो आगे बढ़ेगा 

जो अनपढ़ रहेगा 

वो जाहिलों के बुने जाल में रहेगा 

पढ़ना-लिखना सिर्फ डिग्री होना नहीं है 

जाहिलों की दी हुयी कुर्शियों पे होना भी नहीं है 

अगर उनपे बैठके आपका दिमाग सिर्फ़ इतना चलता है 

की बस जाहिलों के इशारों तक काम करता है 

 

जो पढ़ेगा-लिखेगा, वो आगे बढ़ेगा 

जो अनपढ़ रहेगा 

वो जाहिलों के बुने दुष्चक्र में ताउम्र रहेगा 

टुच्चे-पुचे, तुच्छ-घटिया, बेहुदा नेताओं तक को सहेगा 

उनके बुने बूचड़खानों को अपना घर कहेगा 

ये ज़ाहिल, षड्यन्त्रकारी, नीच अब तुम्हें बताएँगे 

की इनके इज़ाद किये कौनसे नंबर के कोठे पे 

तुम अपना घर (!?) बसाओगे! 

नहीं तो!

इनके पोंते कालीखों के साथ, नौकरी ही नहीं 

बल्कि ज़िंदगी भी गवाँओगे!

(जैसे आपने कोई नौकरी ज्वाइन न करके, कोठे वाले मालिकों का धन्धा ज्वाइन किया हो!) 

जय हो IN-DIA!?

Sunday, November 14, 2021

राजनीती के सर्कष में मैडिकल-इमरजेंसी!

किसी को  जेल से बाहर जाना हो 

किसी को जेल में भिझवाना हो 

किसी से हो खुंदक बड़ी 

कैसे भी काबू में ना आता/ती  हो 

विपदा आन पड़ी हो भारी 

उसी को "मैडिकल-इमरजेंसी" लगा दो  


आज की राजनीती के सर्क में 

भाड़े के टटूओं की भी जरुरत कहाँ? 

अनपढ़, गँवार, लाचार, बेरोजगार  

जंग लगाए दिमाग लिए घुमते   

आदमी के खोल में --

भेजे से पैदल, चलती-फिरती मशीन जैसे 

नादान, नासमझ लोग कहाँ काम आएंगे


हर एक दौर की, हर एक जगह की 

अपनी बीमारी हैं, अपने झमेलें हैं 

अपना रहन-सहन, अपना खान-पान है 

और अपनी ही तरह की हैं परेशानियाँ 

कुछ प्राकृतिक हैं, मगर 

बहुत कुछ के पीछे उस दौर की राजनीती है


जितना ज्यादा मशीनी दौर बढ़ा है 

जितनी ज्यादा तकनीक बढ़ी है 

उतने ही ज्यादा उसके खतरे बढ़े हैं 

जितनी ज्यादा परख बिमारियों की बढ़ी है 

उतने ही ज्यादा उन्हें पनपाने के खतरे बढ़े हैं 

उससे भी ज्यादा खतरनाक 

हर एक दौर की अपनी राजनितिक बीमारियां हैं 

जिनके कीटाणु, कीड़े नकली, कोड मात्र हैं 

और खतरे? असली हैं! हालांकि हैं वो भी कोड ही!

और इलाज के तरीके, दवाईयाँ? वो भी कोड, सर्कष के!


दौर कल भी वो थे 

"जो दिखता है, वो होता नहीं 

और जो होता है, वो दिखता नहीं "

जब आम जनता को वो दिखने लग जाए 

तो समझो, ये सब पुराना हो चुका है 

जो अब चल रहा है 

इस दौर की खबर भी आगे आते-आते आएगी 


जो शायद खोल पायेगी जालों-जंजालों को 

आज के वक़्त के कैसे-कैसे घोटालों को 

कौन-सी इमरजेंसी कब कहाँ और 

कैसे-कैसे लगी 

और उन्हें लगाने के लिए क्या-क्या प्रयोग हुआ! 


कहाँ बुजुर्ग, कैसे-कैसे निपटा दिए गए 

कहाँ धरे गए, जवान कैसे-कैसे

किस दौर की, किस-किस बीमारी के नाम पे? 

कहाँ बच्चे पैदा हुए और कहाँ नहीं होंगे 

होंगे तो कितने होंगे? किस दिन, महीने होंगे?

कैसे होंगे और कब तक निगरानी में होंगे 

कब अपने घर जा पाएंगे या नहीं जाएंगे

कब तक रहेंगे शीशों की आन-बान में वो 

फिर पीलिया कब होगा और 

कब तक लाइट की निगरानी में होंगे! 


हाँ! खासमखास के ही नहीं 

आम आदमी की जिंदगी के उतार-चढ़ाव 

पैदाईस, जीवन-मरण, बीमारी, एक्सीडेंट 

अपने-अपने दौर के कारनामे दिखाते हैं  

राजनीती के रंगो की, ढंगो की गाथा गाते हैं  

राजनीति के सर्कष की उठापटक के 

खेल बताते हैं 

मशीनी युग के, मशीनी गुर बताते हैं

बस ज़रा-सा, आँखों-कानो के साथ-साथ 

जो भेझा भी खोल लें हम!


Without using your mind you are nothing more than a machine or puppet which can be remote controlled in so-many forms. Hardly matter then you are literate or illeterate.  

Saturday, November 6, 2021

जूतम-जूतां, अर लठम-लठाँ!

 कुछ अंडी मानस जूतम-जूतां , अर लठम-लठाँ  होरे 

यो तो बामन है जी 

ना जी नीची जात स (SC, BC) 

झूठ बोलें हैं जी जाट स  

ना जी राजपूत स 

कुछ पढ़े लिखे सूट-बूट साहब बी पहुंचगे 

बोले टेस्ट करांगे 


दोनों साइड के पढ़े लिखे लागे ड़न--

 गोबर का गणेश 

धतूरे का शिव, ज़हर का साँप  

दूध की दही, मंगल का अमंगल 

काल का महाकाल, शनि का प्रसाद 

बलि का बजरंग, माता का जगराता 

हिन्दुआ के मंदिर, मुस्लमाना की मस्जिद 

सिखां  के गुरूद्वारे, अंगरेजां के गिरिजाघर 


एक ने बीच मैं रोका 

इसे के टैस्ट होगे अक इतना कुछ घड़ना पड़गा ?

अर पढ़े लिख्यां  का इन सब ते के काम?


यो ईब थाम सोचो के पढ़े लिखयां का इन सब ते के काम हो सके स?

नहीं तो मैं आगे बताऊँ?

Friday, November 5, 2021

शुभ-अशुभ का सत्यानाश!

 शुभ-अशुभ का सत्यानाश! 

क्या कायरों का यही है इलाज़? 

वो झुण्ड बनाकर वॉर करते हैं 
झुण्ड बनाकर अत्याचार करते हैं
साहबों की सलामी वाले लोग 
सुबह-शयाम, दिन-रात 
बकबक करने वाले लोग 
इतने असाहय और कायर लोग!? 

अरे झुण्ड वालो! 
सुबह-श्याम, दिन-रात, बकबक वालो
झूठ को सच, सच को झूठ बनाने वालो  
झुण्ड बनाकर, प्रदुषण का, पटाखों का 
इलाज न कर पाने वालो 
तुम्हे ज़ाहिल-गँवार कहूं या गुंडे-मवाली?
ये असाहय होने का चोला उतारो 
और रच डालो कोई नया काण्ड
 कोई नया ईलाज!  


ETHICS!

(Pic taken from internet)

Not for everyone to understand. As most do not know who are these bhands and bakbak log and what kinda pollution and crackers they are crying!

By the way what's this shubh and ashubh? Politics influence and decide that. Then be it our fests or any other such occassion. I stopped celebrating bhands decided poisionous shubh-ashubh. My fests, my shubh-ashubh will be my decision and my choice!
This is known as "Cancel Enforced Shubh-Ashubh!"

Friday, October 8, 2021

सरल-सहज़ जहान जहाँ

 कोई दुनिया के इस पार बैठे 

या जाकर कहीं उस पार बैठे 

फ़र्क क्या है ?


घिनौने भेड़ियों के जंजाल से 

कहीं तो मुक्ति का कोई द्वार 

कोई झरोखा दिखे 


शतरंज से, जुए से, जुआरियों से 

जाने-अनजाने, कैसे-कैसे ठेकेदारों से 

दूर बहुत दूर 


ताने-बाने, बाने-ताने-बुनते 

चाणक्यों से, दुष्यंतो से, दुष्टों से परे 

सरल-सहज़ जहान जहाँ 


न पासपोर्ट की जरुरत 

न झंझट वीजा के, न फ़िक्र बैंक-बैलेंस की  

आसपास ही ढूंढ के रखा है वो जहाँ!


At least till the time....... ;)

Wonder, if people who are habitual of talking online, strange ways, since ages, care about distance or borders?