राजद्रोह? खिलाफत -- साम, दाम, दंड, भेद?
ज़मीन थोड़ी-सी
थमी थोड़ी-सी
अटकी थोड़ी-सी
खटकी थोड़ी-सी
उड़ती थोड़ी-सी
रुकी-रुकी-सी
चली ये कहाँ?
रोके से रुकी ना
रोंदे से झुकी ना
भगाये से हिली ना
अंधड़ बन चली जब
इंसान की अकड़ के भर्म पे
लगी पानी में आग जैसे
दिखाए ये भी जाने रंग कैसे-कैसे?
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