एक ड्राइव पे चलें क्या?
तिलक मार्ग, मंडी हाउस, दिल्ली?
या शायद
बहादुर शाह जफ़र मार्ग या नेल्सन मंडेला मार्ग?
सुना है, एक मार्ग पे सुप्रीम कोर्ट है
और एक मार्ग पे है, उच्तर शिक्षा का रखवाला?
सुना है?
इतने बड़े-बड़े नाम है
तो काम भी बड़े ही होते होंगे?
हड्डी-पसली तो नहीं टुटती होंगी ना वहाँ?
खून-ख़राबा भी नहीं होता होगा?
एक अदना से इंसान को -
झुंड द्वारा, साजिशों से घेर कर
उसका खास-म-खास ईलाज भी नहीं होता होगा?
हाँ, शायद ऐसे ईलाज करने वालों का
जरूर कोई ईलाज होगा, इतने बड़े लोगों के पास?
राजनितिक गलियारों के संगीन-सियांरों से
कम ही बनती होगी, ऐसे-ऐसे बड़े लोगों की?
वो खुनी-सत्ताओं के रण में
आम आदमी की चिताओं को आग लगते देख
इतना तो जरूर सोचते होंगे
कम से कम, मेरा तन मन, किसी भी तरह
इन हत्याओं का हिस्सेदार ना हो?
क्यूँकि उससे आगे कुछ कर पाना
शायद ?
उनके काम काज़ या मस्तिक के दायरे में
ना आता हो?
सच में ये रिश्तों का रण है क्या?
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