एक ज़माना था जब
इलेक्शंस मारपिट , गुंडागर्दी का खेल होता था
पैसा-दारु जमकर चलता था
कोई हिसाब-किताब ही नहीं होता था
की ये गवाँरपठ्ठे बनने के बाद करेंगे क्या?
बदला है क्या कुछ?
कैसे उठते हैं उम्मीदवार?
कैसे काम करती हैं ये इलेक्ट्रॉनिक मशीन्स (EVM?)?
कौन और कैसे जीतता है?
दे दारु, दे पैसा, मारपीट, लूटमार?
साम, दाम, दंड, भेद
मुद्दा कोई कहाँ है?
वो जहाँ कहाँ है?
अब ये जो देश है तेरा, कुछ यूँ समझ आता है
"कौन-सा देश बावले, कौन-सी सीमायें?
ये झन्डुओं जैसी बातें तुम कहाँ से लाये?"
जितने ज्यादा गवाँरपठ्ठे होंगे
उतने ज्यादा राजे-महाराजे और गुन्डे राज करेंगे
बस यही दशा और दिशा है भारत जैसे देशों की?
या गुंजाइश है अभी भी कुछ बदलाव की?
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