कोई दुनिया के इस पार बैठे
या जाकर कहीं उस पार बैठे
फ़र्क क्या है ?
घिनौने भेड़ियों के जंजाल से
कहीं तो मुक्ति का कोई द्वार
कोई झरोखा दिखे
शतरंज से, जुए से, जुआरियों से
जाने-अनजाने, कैसे-कैसे ठेकेदारों से
दूर बहुत दूर
ताने-बाने, बाने-ताने-बुनते
चाणक्यों से, दुष्यंतो से, दुष्टों से परे
सरल-सहज़ जहान जहाँ
न पासपोर्ट की जरुरत
न झंझट वीजा के, न फ़िक्र बैंक-बैलेंस की
आसपास ही ढूंढ के रखा है वो जहाँ!
At least till the time....... ;)
Wonder, if people who are habitual of talking online, strange ways, since ages, care about distance or borders?
No comments:
Post a Comment