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राजनीती के सर्कष में मैडिकल-इमरजेंसी!

राजनीती के सर्कष में मैडिकल-इमरजेंसी!

Friday, October 8, 2021

सरल-सहज़ जहान जहाँ

 कोई दुनिया के इस पार बैठे 

या जाकर कहीं उस पार बैठे 

फ़र्क क्या है ?


घिनौने भेड़ियों के जंजाल से 

कहीं तो मुक्ति का कोई द्वार 

कोई झरोखा दिखे 


शतरंज से, जुए से, जुआरियों से 

जाने-अनजाने, कैसे-कैसे ठेकेदारों से 

दूर बहुत दूर 


ताने-बाने, बाने-ताने-बुनते 

चाणक्यों से, दुष्यंतो से, दुष्टों से परे 

सरल-सहज़ जहान जहाँ 


न पासपोर्ट की जरुरत 

न झंझट वीजा के, न फ़िक्र बैंक-बैलेंस की  

आसपास ही ढूंढ के रखा है वो जहाँ!


At least till the time....... ;)

Wonder, if people who are habitual of talking online, strange ways, since ages, care about distance or borders?

Friday, October 1, 2021

छोटी-छोटी सी खुशियाँ

 छोटी-छोटी सी खुशियाँ और बड़े-बड़े से गम? 

या सुकून भरी ज़िंदगी में खामखाँ की खुंदके?

उस जगह को कुछ वक़्त के लिए कहो अलविदा 

और देखो गुल होते हैं झमेले और गम कैसे कैसे!


काँव-काँव करते इन्सानों के बीच, या 

चौसर के गुट्टे बजाते, जुआरियों के यहाँ 

दिमाग-ओ-दिल तो उलझे होते हैं चालों में, घातों में 

घर हो या फिर ऑफिस, ऐसी जगह सुकून कहाँ?


 ऐसी जगह लोगों के पास, जिंदगियों को सवारने को 

किसी को बाँटने या देने को कुछ नहीं होता 

सिवा जाहिलपन, झूट-कपट, मक्कारी, दासता के सिवा 

ऐसे लोग और ऐसी जगहें खा जाती हैं, हर अच्छाई को!


ऐसे लोगों और ऐसी जगहों के बीच रहकर 

बड़े-बड़े सुरमे कालिख हो जाते हैं 

और महाकालीख बनते हैं, राजे-महाराजे!

तो चैन-ओ-सुकून ऐसे कीचड़ में नहीं, है उससे दूर कहीं!


बहुत दूर भी नहीं, आस-पास ही है वो सब 

वो इन्सान, जगहें, चैन-ओ-सुकून और आराम 

ग़र ज्यादा न मची हो हाय-तौबा, तो -- 

थोड़ा सा परे, राजनीती के गलियारों के झोंके-से!

जुआ मीनारे

जुआ मीनारे, 

एक मर-ले में हों या दस-ग्यारह में 

आखिर हैं तो मर-ले, मार-ले ही!

चैन-सुकून कहाँ है ऐसी इमारतों में? 

रहने वालों से ज्यादा हाहाकार है 

उनके बनाने-बिगाड़ने वालों में!


जुआ मीनारों के ढेर पे खड़े लाक्ष्यागृह 

मरते-मरते भी सौंप जाते हैं दस्तावेज 

अपने सालों-साल चले, जुए की गवाही के 

कैसे-कैसे मुकदमों की राजनितिक घढंत के!

और कुर्शियों पे विराजमान ताने-बानों के


जुआ मीनारें, कैसे-कैसे अँधेरे-उजालों की 

कैसे-कैसे घड़े गए व्यक्तित्वों के रूपों की 

जिनमें आप सब होते हैं, खुद को छोड़कर 

इस जुए का काम ही है खुदारी को मारना 

यहाँ असलियत पर परतें लिपि-पोती जाती हैं!