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राजनीती के सर्कष में मैडिकल-इमरजेंसी!

राजनीती के सर्कष में मैडिकल-इमरजेंसी!

Tuesday, May 11, 2021

दहशत के वक़्त में

दहशत के वक़्त में 

जिम्मेदार बनिए, दहशतकर्ता नहीं

हक़ीक़त जानने की कोशिश करिये 

अफवाहों को फ़ैलाने की नहीं 

 

यहाँ-वहां मौत का ताँडव तो है 

मगर उतना भी नहीं 

जितना जंगल में लगी 

किसी आग की तरह फैला दिया गया है 


लोग मर तो रहे हैं 

मगर कैसे?

ये जानना सबसे जरुरी है 


कायर की तरह चारदीवारों में 

कैद रहना  इसका समाधान नहीं 

थोड़ा सजग रहिये, थोड़ा जिम्मेदार बनिए 

अपने आस -पास को जानने की कौशिश करिये 

राजनीती और राजनितिक बिमारियां  क्या होती हैं 

उसे जानने की कौशिश करिये 


कहीं ऐसा तो नहीं 

की इतने बड़े-बड़े  गाँव-शहरों  में 

हर ए क  मौत की गिनती होने लगी है?

सिर्फ़ और सिर्फ़ आपको परोशने के लिए 

वो भी चढ़ा-बढ़ा कर! 


ये नंबरों का खेल है, और इस खेल में 

इधर और उधर वाली सब पार्टियों के 

अपने-अपने नम्बर हैं 

किसी भी हद को पार कर वो नंबर लाएंगे 

जिन्दा या मुर्दा, इंसान भी महज़ एक नंबर है 


कौन कैसे मर रहा है 

ये जानने की बजाय

सबको कोरोना की स्टम्प लगा दी गयी है 

बच्चे, बूढ़े, जवान, पुरुष, औरत  

सबको ए क लाठी से हांका जा रहा है  

बाकी सब बीमारियां ख़तम हो गयी हैं 

क्या सिर्फ और सिर्फ कोरोना ही बचा है?


जैव-बीमारी जैसी दहशत के वक़्त 

टीवी, अखबार जैसे भाँडों पर 

क्या दिखाएँ और क्या ना  

 क्या बताएँ और क्या ना,  पर पहरे होते हैं 

रोक-टोक होती है, मगर है क्या? 

क्योंकि यही इस खेल का रिमोट कण्ट्रोल हैं 

 ये इस पार्टी के हैं, वो उस पार्टी के 

(प्रोपेगंडा के साधन) 


अगर नहीं 

तो खुद ही सोचिये 

ये सब क्या चल रहा है?


मरने वालों में बुज़ुर्गों और कमजोर 

लोगों की संख्या कहीं ज्यादा तो नहीं 

अगर हाँ 

तो आप भी कहीं उन्हें मारने के 

भागीदार तो नहीं?

दहशत का हिस्सा बनकर?


सोचो 

आम जनता के खुली हवा में या अपनों के बीच भी 

मास्क न लगाने से बीमारी फ़ैलती है 

मगर 

नेताओं की रैलियों और धरणो से बीमारी डरती  है क्या? 

हाँ!

राजनितिक बीमारी की यही सबसे  बड़ी पहचान है!

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