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राजनीती के सर्कष में मैडिकल-इमरजेंसी!

राजनीती के सर्कष में मैडिकल-इमरजेंसी!

Monday, January 18, 2021

शायद बदल रही है हवा?

When you feel

Irritated
Frustrated
Wanna blast
Wanna do "at-least" a few murders
Wanna wipe-out MDU from the face of earth!

When you feel like:
भाड़ में जाएँ "ये-क्लासेज"
और भाड़ में जाएँ "ये-खेल"
अपनी दुनियाँ इस सबसे परे
भाड़ में जाएँ "इसके-खिलाड़ी"
इसके प्राणी अपनी समझ से परे

और फिर
खुलने लगें परतें
परत दर-ब-द-र
पलटने लगें पेज-पे-पेज
और मुकरने लगें तानाशाही के फ़रमान
ताने-बाने के चक्रव्यूह समझ से थोड़ा परे
मगर लगने लगे शायद बदल रही है हवा
भले के लिए या बुरे के लिए?

Friday, January 15, 2021

जुए से दूर एक दुनिया सजाने चली हूँ

समझ से परे ये रस्ते 

समझ से परे ये दुनिया 

कहें इन्साफ है ये 

मुझे लगा 

अगर ये इन्साफ है 

तो दुर्वय्वहार क्या है?


जुबान पे गाली होना ही तो 

दुर्वय्वव्हार नहीं 

मार-पिट, छल-कपट ही तो 

दुर्वय्वव्हार नहीं 

जुआ खेलना और करना शिकार 

जानवरों का नहीं, इंसानों का 

इससे बड़ा और क्या होगा दुर्वय्वहार?


ज़िंदा इंसानों को बनाके दांव 

बिना उनकी इजाज़त के 

बिना उनकी मर्जी के 

उनको बताये समझाये बिना 

बना देना मोहरे यूँ अपनी ही मर्जी से 

इससे बड़ा और क्या होगा दुर्वय्वहार?


चला देना यूँ फाइल्स दावों-प्रतिदावों की 

ऐतराज़ के बावजूद! 

बिठा के यूँ चालों से लाक्षागृहों में

और कहना 

चल शर्तों पे हमारी वरना! 

इस चक्रव्यूह से निकल के दिखा!

इससे बड़ा और दुर्वय्वहार क्या होगा ?


अगर यही इन्साफ है 

और ऐसे ही हैं जज और कोर्ट्स 

तो धिक्कार है ऐसे विकृत, खोखले 

दरबारों पे, समाजों पे, सत्ताओं पे 

मेरे पैरों के नीचे रगड़ी पड़ी हैं 

तुम्हारी जुआरी और शिकारी शर्ते 

जाओ सजा लो उन्हें अपनी फाइल्स में! 


जुए से दूर एक दुनिया सजाने चली हूँ 

ऐसी बेहूदा भीड़ से दूर, बहुत दूर!

जुआरियों से, शिकारियों से

बेहूदा, विकृत, खोखले ताने-बाने से बहुत दूर!  

है कहीं दुनिया ऐसी?

हो तो बताना,  उसे ही ढूंढ़ने चली हूँ