राजद्रोह? खिलाफत -- साम, दाम, दंड, भेद?
छोटी सोच और तुच्छ लोग
खा जाते हैं
आसपास की हर अच्छाई को
जैसे दीमक खा जाते हैं
मज़बूत से भी मज़बूत लकड़ी को
लकड़ी निर्जीव है, नहीं मालूम ईलाज उसे
न ही वो हिलडूल सकती इधर या उधर
मगर इंसान न ही निर्जीव है और न ही जड़!