भगवानों के नाम पे, काले-धब्बे अहंकारी हैं
अपराधियों के अड्डों पे, सूरज-चाँद, गुंडे-मवाली हैं
सतरंज के बिछौनो की चाहत भी काली (कुर्शी) हैं
जब पता चले मस्जिदों की दीवारें, अपराधों ने रंग डाली हैं
लीचड़ों की सेनाओं के जंगी स्थान, गुप्तांगों तक के बस कब्ज़े हैं
कौन से जंगी सिपाही हैं ये? लीचड़-कुंठित-मानसिकता के नमूने हैं!
इनके चाँद, ईदी तक बस गुप्तांग रेशों तक को हथियाने की कहानी हैं!
जब पता चले गिरजाघरों के घंटो पे गांडूऔ ं का डेरा है
ये कहें तो उजाला है, जो ये कहें तो काली रात है, अँधेरा है
भद्दी मानशिकता के मकड़जाल-सी गिद्दी-चालें हैं, घातें हैं
सतरंज के खिलाडी कहीं, कहीं बादशाह, बेग़म, तो बाज़ीगर हैं !
धर्म, सत्ता और सतरंज were always a filthy mess of exploitation and exploiters and would be! It's common people who have to think how not to fall prey to these exploiters. If have fallen in their trap then how to get out of that.