राजनीती में युद्ध है युद्ध में राजनीती है
कोई सरहद है न दीवार है
खेल सब संसार है
कोई बीमारी है न मरीज़ है
खेल सब बाज़ार है
बीमार कोई दीखता नहीं
मगर नंबरों की भरमार है
महामारी-महामारी करते-करते
युद्ध-युद्ध, सीमा-सीमा के बादल
कहाँ से उठ आते हैं?
ये हकीकत भी खेल है
राजे-महाराजों की सतरंज है
इंसान, आज भी राजा है या रंक है
बीच दोनों हाथों में प्यादों-सी बिसात है
जो खेल को समझते हुए खेल से बहार है
बस वही मस्त है, बाकी सब त्रस्त है?