यहाँ आदमी को आज भी नाम से जानते हैं
गलियों के और घरों के नंबरों से नही
ये ज़रा आदिम इलाक़े हैं
ये कहा जाता है
"परखना मत!
परखने से कोई अपना नही रहता"
ये बचपन का जहाँ है!
आज यहाँ ज़्यादातर अधकचरा रहता है
जो यहाँ तो है मगर यहाँ का कम है?
मध्य मार्ग!
इस नाम से पहचान सकते हैं इसे!
जो पुराने से जुड़ा है कहीं ना कहीं, और
नये दौर में रहता है मगर अपनाने से हिचकता है!
नये इलाक़े!
यहाँ घरों, गलियों को ही नही
इंसानो को भी नंबरों से पहचानते हैं!
ठोक-बजाकर, परखने का चलन है यहाँ
किस इलाक़े में हैं उसी हिसाब के
नंबर से जाना पहचाना जाता है इंसान
यहाँ सिर्फ़ परखा नही जाता, बल्कि
तोड़-मरोड़-जोड़-घटा कर तराशा जाता है
बिल्कुल सोने-चाँदी-हीरे की तरह!
इंसान, इंसान तो कम रहता है यहाँ पर
पर स्टॉक बाजार के उतार-चढ़ावों को
बखूबी नगीने-सा उछालता-पटकता है
किसी रोबोट-सा जो चाहे कर गुज़रता है!
परहेज कोई नही है
ज़िंदगी, किसी मिशन-सी और मसिनी है यहाँ!?