देवताओं के यहाँ कांड बड़े-बड़े हैं इंसान बना रहे इंसान, ये बात बड़ी है ओ सरकारों को रोने वालों थोरा खुद को भी रो लो
ये सरकारें तुम्हारी ही चालों
और ढालों पे बनी-बिगरी है
या तुम्हारी अज्ञानता पे टिकी हैं?
ये तो बताओ की यहाँ तक
तुम भला पहुँचे कैसे?
या पहुचाए किसने?
की तुम्हारी जिंदगी के
छोटे-छोटे फसले भी
सरकारें लेने लगी है?
थोरा इधर, थोरा उधर
लिखते रहिए
नही तो लगेगा
तुरुप के पत्तों की तरह
छुपी चालें चल रहे हो
या रेत के किलों की तरह
मरमरा के गिर गये हो
चलो मिलते हैं
अरोडियों से
करोडियों से
झंडू्वो से
डंदूओं से
चलो मिलते हैं